भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अमल / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:37, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
धरनी अमलन को कहै, खात पियत संसार।
अमली ताहि सराहिये, तत्त्व अमल मतवार॥1॥
धरनी अमली सो भला, सदा रहै मस्तान।
मदते मति होत जो, ते नर क्रूर कुजान॥2॥
धरनी अमली सो भला, चहुँदिशि फिरै निशंक।
साँच वचन वक्कत रहे, राजा गनै न रंक॥3॥
धरनी अमल अनूप है, राम कृपाते पाव।
अब उपाय मिली है नहीं, रंक होउ कै राव॥4॥
नयनन मदिरा जो पिवै, श्रवनन चाखै गोश्त।
माँग तमाखू नाशिके, ते धरनी के दोस्त॥5॥