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धरनी अक्षर सब पढो, हिन्दु आन तुरुकान।
निज अक्षर परिचय बिना, जितु कित सबै भुलान॥1॥
बिनु अक्षर को अक्षरा, बिनु लिखनी को लेखु।
बिनु जिह्वा को बाँचना, धरनी लखो अलेखु॥2॥
धरनी कर पगु लेखनी, लीजै लोक अनेक।
नयनन अक्षर जो लिखै, सो जग हो कोई एक॥3॥
लिखि 2 सिखि 2 का भयो, पढि गुनि गाय बजाय।
धरनी मूरति मोहिनी, जौं लगि हिय न समाय॥4॥
अक्षर सब घट उच्चरै, जेते जिय संसार।
लागि निरक्षर जो रहै, सो अक्षर टकसार॥5॥
धरनी सूरति करिधरो, करो करेजे पाठ।
लिखनी एकै अक्षरा, पढ़नी पहरो आठ॥6॥
धरनी अक्षर जहँ लगी, पढ़ि पढ़ि सब नर भूल।
एकै अक्षर सार है, सब अक्षर को मूल॥7॥
मक्तब तख्ती ले पढ़ै, पठशाले भुइ पाठ।
धरनी अक्षर सो पढ़ो, कागज पाट न खाट॥8॥
धरनीधर में घर करो, जहां शीत ना घाम।
अक्षर आँक दुई तजो, गहो निरक्षर नाम॥9॥