भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुरुष व्रह्म / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:27, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
सहज ही सृष्टि को दृष्टि लागी रहे, सदा सर्वदा भरपूर भर्ता।
धर्म धन काम महि मोक्ष विश्राम सुख, देत प्रभु जाहि तेहि कौन हर्ता॥
कर्म कटिजात भव-सिन्धु सुखि जात कह धरनि यह वात नहिँ काँह मर्ता।
स्वर्ग पाताल महि मण्ड ब्रह्माण्ड जत, कामिनी सकल एक पुरुष कर्त्ता॥1॥