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"अध्यात्म / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

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04:28, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

उठो उँकार दश द्वार के देव हरि, पाँच पच्चीस मिलि केर कलोलैँ।
अधर अस्थान जँह द्वादशा पान, तँह धरनि धध्यिान निर्वाण बोलै॥
हृदय कमलासने सकल भल नाशने, बिना गुरु विकट पट कौन खोलै।
जागते सोवते दसों दिशि रैन दिन, रहस रघुनाथ जन साथ डोलै॥3॥