भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ब्रह्म पसार / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:28, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
कियो नहि यज्ञ जय योग वैराग कछु, तीर्थ व्रत नेम साध्यो न कोई।
पढयो पूरान गुन ज्ञान जान्यो नहीं, धरयो नहि ध्यान अभियान खोई।
पाँच परपंचते साँच भाष्यो नहीँ, नाच नाच्यो कपट बीज बोई।
सोवते जागि अपनाय आपुहि लियो, धरनि कह धरनि योँ धन्य सोई॥4॥