भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अध्यात्म 2 / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:33, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

पूर्व पगु पर्त पुरुषोत्तमहि पन्थ जनु, पछिम परतच्छ रनछोर घोरे।
दछिन रमता है रमनाथ के साथ जनु, उतर फिरता है बद्रीश जोँरे॥
दास धरनी कहत साधु संगति रहत, भवन के भीतरे मौन वौरे।
करै विलछानि जेहि आनि सतगुरु मिले, कहो नहि जात यहि वात मोरे॥9॥