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ब्रह्म व विष्णु महेश थपो जित जीव सुरासुर इन्द्रहु ताहू।
वारिव पौन पहार मसन्दर मन्दर सागर और नरवाहू॥
जीव अजीव रच्यो कत कौतुक, देखुन बूझि कहाँ विलखाहू।
कहै धरनी भजि आगत ही, कर्ता हर्त्ता डरता नहि काहू॥28॥