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"चेतावनी 4 / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

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धरयो बटोरि हीरा रतन मोति चीरा, दियो अनाथपीर जयो न जाप पिय के।
पवार पाट अंवर कहा चढे सुखवंर, किये जो आह-डंबर पिये कहा अमीय के॥
कियो न ध्यान नाथ् को गँवायो गांठि हाथ को, लियोन साथि साथ को भरोसे जाय जीव के।
भजो न जौलों नाथ गात अन्त है, वसन्त-पात, औ धिमे सिरात जात जैसे तेल दीप को॥3॥