भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विनय 4 / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:58, 21 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
वाजिगर पूतरी को काह आपनो चलाव, जैसे ही फिरावे सो ते साइ नाच नाचिये।
कोइ ना करत धरु देखत अनेक नरु, दीनानाथ दया करु कैसे काल बाँचिये।
दवो तन मन प्रान सकल जहान जान, सोइ करे त्रान वात धरनि है साँचिये।
जेते सान मद माँह काहु को न साका रहो, दीनबन्धु! तेरे विनु और काहि याचिये॥17॥