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मूल मंत्र अवलोकि, आत्मा सोवत जागो। तोरे बन्धन मोह, साधुको पारस लागो॥
ध्यानधरे तोहि ढौर, जहाँते जोति प्रकासै। खुले ललाट-कपाट वीर व्रह्मंडहिँ भासै॥
दरश देखि मन मग्न होइ, गुन इन्द्रिय सहजै मरे।
धरती ता पगु वन्दिये, भवसागर जासे तरे॥17॥