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कर्त्ताराम सबहि को कर्त्ता, कर्त्ताराम करहु सब जाय।
कर्त्ताराम गुरू सबही को, कर्त्ताराम सबहि को बाप॥
कर्त्ताराम सबहि को साहेब, कर्त्ताराम प्रचंड प्रताप।
धरनी कर्त्ताराम नाम गति, कर्त्ताराम मुक्ति को छाप॥1॥
कर्त्ताराम कहो सबकोई, एकहिते जे भया अनंत।
महिमंडल मैंदान रुयो है, खेलत सब घट विविध वसंत॥
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर मुनिगन, वेद विचारि पाव नहि अंत।
धरनीदास तासु शरनागत, एक अनादि आदि अरु अंत॥2॥
कर्त्ताराम चहुँ युग वरनो, दूजा राम कहो गुन गाया।
ब्रह्मादिक सनकादिक नारद, शारद शम्भु कहां ठहराया॥
रामानन्द कबीर नामदेव, गोरख धु्रव, प्रह्लाद दृढ़ाया।
धरनी सकल संत मति बूझो, ताते मन परतीति बढ़ाया॥3॥
कर्त्ताराम सकल घट व्यापक, आतम राम अखंडित सोई।
तारक राम कहो मन भावत, भावते सीताराम रटोई॥
परशुराम बलिराम बतावै, भावै रमता राम रयोई।
धरनी शब्द विवेक विचार, कर्त्ता के उपरन्त न कोई॥4॥
कर्त्ताराम कया-मंदिर मँ, लाये कुँजी कुलुफ केवारा।
जोँरे मिलो संत गुरु चेला, खोलि कपाट दुआर उधारा॥
भीतर ते वाहर लै आवै, आँखि दिखावै अधर अधारा॥
धरनीदास कही परमारथ, संतो। सव मिलि करो विचारा॥5॥
कर्त्ताराम साँ नेह निरंतर, त्रिकुटी ध्यान धरो ठहराई।
पाँचो इन्द्रिय वशकरि राखो, वाद विवाद स्वाद बिसराई॥
सबसे दया दीनता लघुता, धरनी तरि हो यही उपाई।
साँचा होइ सो राम-सनेही, झूठा फिरि फिरि भटका खाई॥6॥
कर्त्ताराम कृपालु जाहिपर, सो जन सकल सृष्टि पर सोहै।
देय जो दीनदयाल दयाकरि, लेवनहार कहो धोँ को है॥
राखनिहार भवो जेहि राम, तो मारनहार धोँ कौन बड़ो है।
धरनी गहु चौगान ज्ञान को, गगन गुफा मैदान बनो है॥7॥
कर्त्ताराम अनुग्रह जाको, ताके उर उपजो अनुरागा।
काम क्रोध मदलोभ लजानो, धंधा छूट ध्यान मन लागा॥
उरध-कमल प्रीतम को परिचय, भौ निर्भव छूटी सब रागा।
हरि 3 हृदया लव लागी, धरनी धनि धनि ताकी भागा॥8॥
कर्त्ताराम नाम जो पाओ, ताके आई परतीति।
कर्त्ताराम नाम जो पाओ, तिन गाओ अनुभव गुन गीति॥
कर्त्ताराम नाम जो पाओ, ताकी ढही भरमकी भीति॥
कर्त्ताराम नाम जो पाओ, धरनी ताकी हार न जीति॥9॥
कर्त्ता राम नाम जो सुमिरै, ताको छूटो सब जंजाल।
कर्त्ता राम नाम जो सुमिरै, ताको सन्तत सकल दयाल॥
कर्त्ता राम नाम जो सुमिरै, ताको कहा करैगो काल॥
कर्त्ता राम नाम जो सुमिरै, धरनी केते भये निहाल॥10॥
कर्त्ता राम नाम निज गहि रहु, तजि दुर्मति सत-संगति आव।
कर्त्ता राम नाम निज गहि रहु, उतपति परलय विपति मेटाव॥
कर्त्ता राम नाम निज गहि रहु, आनि बनो है आछो दाव।
कर्त्ता राम नाम निज गहि रहु, धरनी यह तन रहो कि जाव॥11॥