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कर्त्ताराम करै सो होई। युग 2 दूजा और न कोई॥
घर एक सिरजा सिरजनहारा। उतरु निरंजन सोँ बनिजारा॥1॥
जा घर ब्रह्मा विष्णु महेशा। रज सत तप तीनोँके भेसा॥
जा घर पाँचो तत्व समाना। गुरुप्रसाद भद कछु जाना॥2॥
धरती आपनि अगिन अरुवाई। पँचये आनि आनि अकास समाइ॥
पाँचों के पुनि पाँच प्रकिरती। समुझि परी सत-संगति विरति॥3॥
हाड चाम अरु मास अधारी। रोमावली सघर विस्तारी॥
सुचि और लार पसीना धातू। रक्त समेत बना इन वातू॥4॥
भूख प्यास आलस अरु क्रोधा। निद्रा सहित पाँच परबोधा॥
गावन धावन और वकताई। जिनकी संगति छींक जमाई॥5॥
माया मोह लाज निर्माया। राग दोष करि भेस बनाया॥
धरनी पीत सेत जल वरना। अग्नि लाल किहु शिरन शरना॥6॥
हरो बाइ अरु ध्याम अकाशा। पाँचो रंग परकाशा।
विविध कया वनको विस्तारा। कहिये पाँचों को घर-द्वारा॥7॥
धरतीका घर कियो कलेजा। गुह्य द्वार कोई ताकँह भेजा॥
पानी का घर किया लिलारा। इन्द्रिय दीनों ताको द्वारा॥8॥
पित्त-मँझार अग्नि को गेहा। नयना ताको द्वार उरेहा॥
वाईका घर जंघा जानो। नासा ताको द्वार बतानो॥9॥
अरु अकाश-घर गगन निरूपा। श्रवन द्वार अति बनो अनूपा॥
यहि घर माँझहि तीनो लोका। यहि घरमाँ है शोक विशोका॥10॥
यहि घरमाँह जीव अरु शीऊ। यहि घरमाँह नारि अरु पीऊ॥
यहि घरमँह ठाकुर और दासा। यहि घरको कत कहाँ तमाशा॥11॥
यहि घर हंस मानसतर धावै। यहि घर चन्द्र चकोर चितावै॥
यहि घर माँह गुरु औ चेला। यहि घर माँह तिरथ और मेला॥12॥
यहि घरमाँहे निर्मल जोती। यदि घर मँह मेवा औ मोती॥
यहिघर माँह योग और युक्ती। यदि घर माँह मोक्ष अरु मुक्ती॥13॥
यहि घर माँही आपै सोई। यहि घ्ज्ञर माँही दर्शन होई॥
जो गुरु मिले तो पंथ बतावै। तत्व लखाय ध्यान मन ला वै॥14॥
धीयान सोइ जो शून्य विलासै। शून्य सोई जो चन्द्र पकासै॥
चन्द्र सोई जो प्रगटै जाती। जोति सोइ जँह बरसै मोती॥15॥
मोती सोइ जँह हंस लोभाई। अवरन वरन वरनि नहि जाई॥
अनहद धुनि सुनि 2 सच होई। गुरु गम जाने विरला कोई॥16॥
टूटै भरम छुटै यम जौराँ। गंध सुगंध लेत जनु भँवरा॥
मटे मिमिर होय उँजियारा। उघरे त्रिकुटी कठिन किवारा॥17॥
निशि दिन बरसै अमृत धारा। सनमुख दरसै सबते न्यारा॥
निरखत नयन भई परतीती। आदि अंत मधि शंका बीती॥18॥
जँहका बिछुरा तहाँ समाना। जीवको आ वागमन नशाना॥
मूये मुक्ति सबनको होई। जीवन मुक्त सन्तजन कोई॥19॥
ऐसो शब्द करै निरु आरा। धरनी सो गुरु देव हमारा॥