भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कल्याण / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:20, 21 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

91.

जाके राम-चित लागा।टेक।
ताके मनको भरम भुलानो, धंधा धोखा भागा॥
सो जन सोवत आँचकहीमेँ, सिंह सरीखे जागा।
धनि सुत जन धन भवन न भावत, धावत वन वैराग॥
हरषित हंस दशा चलिआओ, दुरिगो दुर्मति कागा।
पाँचहु को परपंच न लागै, कोटि करेँ जो दागा।
साँच अमल तँह झूठ न झांकै, दया दीनता पागा।
सत्य सुकृत सन्तोष समानो, ज्यों सूआ-मधि धागा॥
ले मन पौन उरधको धावै, उपजु सहज अनुरागा।
धरनी प्रेम मगन जन जोई, सोइ जन शूर सुभागा॥1॥