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171.
करु मन कर्त्ताराम सनेही।टेक।
निशि वासर अरु आदि अंतलोँ, मूल मंत्र जग येही॥
परि हरि कुमति पकरि सत-संगति, जन्म सुफल करि लेही।
और के गर्व कहाँ गर्वाधो, चलिहै दगा दे देही॥
नरक निवास बास जब होतो, त्राहि त्राहि उचरोही।
जिन तोहि दियो अहार अधोमुख, ताहि कहाँ विसरोही॥
भीतर भवन रतन बिसराओ, बाहर ढूँढि फिरोही।
धरनी श्री भगवंत भजन करि, भवजल सुखहिँ तरोही॥1॥