भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मलार / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:45, 21 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

171.

करु मन कर्त्ताराम सनेही।टेक।
निशि वासर अरु आदि अंतलोँ, मूल मंत्र जग येही॥
परि हरि कुमति पकरि सत-संगति, जन्म सुफल करि लेही।
और के गर्व कहाँ गर्वाधो, चलिहै दगा दे देही॥
नरक निवास बास जब होतो, त्राहि त्राहि उचरोही।
जिन तोहि दियो अहार अधोमुख, ताहि कहाँ विसरोही॥
भीतर भवन रतन बिसराओ, बाहर ढूँढि फिरोही।
धरनी श्री भगवंत भजन करि, भवजल सुखहिँ तरोही॥1॥