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जबते सतगुरु शबद लखायो।
मिट गई तास आस भई पूरन नाम निरंख दुख दूर भगायो।
कर सुरतार शबद धुनि जागी ज्ञान महल परचित्त चढ़ायो।
प्रेम घुमड़ अभी रस बरसत उपजत रंग अंग सुख पायो।
गुरु परताप दया साधन की बार-बार चरनन सिर नायो।
जूड़ीराम सतगुरु की महिमा हंस मिलन को पंथ लखायो।