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"अक्षर की व्यथा / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर

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04:12, 8 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

मुझे नहीं पड़े रहना है
किसी अंधेरे कोने में अनजान सा
किताबों के पन्नों तक सिमटे
जिस पर धूल की परत
मोटी और मोटी होती जाती है
नहीं जलना है चूल्हे में
आग सुलगाने के वास्ते
नहीं जाना है किसी आवारा जानवर के मुँह में
उसकी भूख मिटाने
नहीं दबना है मुझे कंही
बदबुदार कचरे के ढेर में
बिकना नहीं है मुझे रद्दी में
पानी में पड़े गलना नहीं है मुझे पल-पल
टूटना नहीं है तार-तार
नहीं जीना है मुझे
कागज के बंद लिफाफों के अंदर
घुट-घुट कर
नहीं जकड़े रहना है मुझे
निर्बल रुढियों में
बस! बहुत हुआ
अब मुझे स्वतंत्रता चाहिए
घुंघट से झांकते अनगिनत चेहरों से
मिटाना है मुझे अशिक्षा का कलंक
मैं अपनी गूढ़ी काली काया संग
हर जुबान हर हाथ में जाकर
हर कलम से छूटकर निखार चाहता हूँ
स्थिर जल में गिरती बूँद की तरह
अब मैं फैलाव चाहता हूँ।