"अरसा / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन चौहान |अनुवादक= |संग्रह=किनार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:40, 8 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
बहुत अरसा हो गया है
उन लम्हों को गुजरे
जो रहते थे सदा मेरे साथ
पल-प्रतिपल
हमेशा मानसपटल पर दौड़ते
कभी थकते नहीं
बहुत अरसा हो गया है
कलम से झरते उन षब्दों को भी
रचते रहते थे जो कुछ नया हमेशा
देते रहते थे साकार रुप
उन अनबुझी, अनछुई
हकीकत तलाशती कल्पनाओं को
बहुत अरसा हो गया है
डाकिए को मेरे घर का दरवाजा खटखटाए
रंग-बिरंगे पन्नांे पर उभरी
मेरी रचनाओं को
मेरे आंगन तक छोड़े
जाने क्यों लगता है जैसे
जंजीरों में जकड़ लिए गए हों मेरे हाथ
किसी षहनशाह के डर से
ताकि खड़ा न हो पाए
एक और ताजमहल
गलती से भी
पता नहीं कब खत्म होगी
इस विराम की बेमतलब खामोश रात
और मिल पाएगा रोशनी का सुराग
फूटेगी कल्पना की एक नन्ही-सी कोंपल
और जन्म होगा किसी नए सृजन का
षायद तभी ढीली हो पाएगी
षहनशाह की मजबूत बेड़ियों की जकड़न
और मिल पाएगी
इस खामोश लंबे रास्ते में
बोलती कोई पगडंडी।