भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"परछाई / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन चौहान |अनुवादक= |संग्रह=किनार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:47, 8 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

वह परछाई बनकर भी
चलती रही मुझसे परे-परे
करती रही मुझसे छूटने का
असफल प्रयास
कचोटती रही मेरी नस-नस को
करती रही जैसे मुझसे जलन
मुझसे पीड़ा/ डाह
न जाने क्यों?

शायद गलती से आ पहुँची थी
मेरे भीतर वह
उसके विचारों का नहीं था
शायद मैं
वह भटकाना चाहती थी मुझे
उन टेढ़े-मेढ़े, गलत रास्तों पर
जो मेरे ख्यालों से थे बहुत परे

दिशाएं दोनों की अलग-अलग
एक-दूसरे से विपरीत
एक छोर से चिपकी हुई लेकिन
न चाहते हुए भी
मजबूरीवश
चलती रही वह मेरे साथ
अपने स्वार्थ को नापते हुए
क्योंकि वह भलीभांति जानती थी
मेरा जिंदा रहना ही
उसका जिंदा रहना है।