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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राज महिसौथा गादी पड़ले
पाँच मलीनियाँ मोरंग से झरलै
मनमे विचार हौ मलिनियाँ करै छै
सुन गे बहिनियाँ दिल के वार्त्ता
जइ दिन जनम मोरंगमे लेलियौ
सोइरी घरमे अँचड़ा बन्हली
बान्हल अँचरा बन्हने रहि गेल
मकड़ा जाल अँचड़ामे लागि गेल
वयस बुढ़ा गेलै केश तिलकि गेलै
दाँत बतीसो मुख से झड़लै
शनि रवि बरमहल केलियौ
एकादशी हरिबातो केलीयौ
तुलसी चौड़ा जल ढ़ारलीयै
मंदिर पूजा शिव बाबा केलीयै
पुरूब राज पुरैनियाँ गेलीयै
धार कछेरमे मोरंग बसलीयै
नैना योगिन कुसमौ न घुरौलियौ
तीन सय साठि हम जादू सीखलीयै
लटे लटमे जादू उघलियै
तहु से पुरब धौलागिरी गेलीयै
धौलागिरीमे डेरा गिरौबीयै
तीन दिन तीन राति रहलीयै
तइयो उदेशबा निरमोहिया देवता के
नइ मिललै गय।
हकन कनै छै सती मलीनियाँ
सुन गे देवी देवी असावरि
बान्हल मड़बा मोरंग छोड़लियौ
जाति बेटा के लात मारलीयै
बाप-भाइ के बोली कटलीयै
तइयो नै दरशनमा हमरा स्वामी मैया देलकै गै।
एतबे वचनियाँ मलीनियाँ सब सुनैय
तब मलीनियाँ हकन कनै छै
सुन गे देवीया देवी असावरि
जावे नै दरशनमा मैया देबही
महुरा बोनमे देवीया जेबै
अगिया माहुर घोरि के खेबै
त्रियावध हम योगिनियाँ तोरा लगा देबौ गै।