भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हल्दीघाटी / त्रयोदश सर्ग / श्यामनारायण पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
|सारणी=हल्दीघाटी / श्यामनारायण पाण्डेय
 
|सारणी=हल्दीघाटी / श्यामनारायण पाण्डेय
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
'''त्रयोदश सर्ग: सगजो'''
  
<font size=4>त्रयोदश सर्ग: सगजो</font><br><br>
+
कुछ बचे सिपाही शेष¸
 +
हट जाने का दे आदेश।
 +
अपने भी हट गया नरेश¸
 +
वह मेवाड़–गगन–राकेश॥1॥
  
कुछ बचे सिपाही शेष¸ <Br/>
+
बनकर महाकाल का काल¸
हट जाने का दे आदेश। <Br/>
+
जूझ पड़ा अरि से तत्काल।
अपने भी हट गया नरेश¸ <Br/>
+
उसके हाथों में विकराल¸
वह मेवाड़–गगन–राकेश।।1।। <Br/><Br/>
+
मरते दम तक थी करवाल॥2॥
बनकर महाकाल का काल¸ <Br/>
+
 
जूझ पड़ा अरि से तत्काल। <Br/>
+
उसपर तन–मन–धन बलिहार
उसके हाथों में विकराल¸ <Br/>
+
झाला धन्य¸ धन्य परिवार।
मरते दम तक थी करवाल।।2।। <Br/><Br/>
+
राणा ने कह–कह शत–बार¸
उसपर तन–मन–धन बलिहार <Br/>
+
कुल को दिया अमर अधिकार॥3॥
झाला धन्य¸ धन्य परिवार। <Br/>
+
 
राणा ने कह–कह शत–बार¸ <Br/>
+
हाय¸ ग्वालियर का सिरताज¸
कुल को दिया अमर अधिकार।।3।। <Br/><Br/>
+
सेनप रामसिंह अधिराज।
हाय¸ ग्वालियर का सिरताज¸ <Br/>
+
उसका जगमग जगमग ताज¸
सेनप रामसिंह अधिराज। <Br/>
+
शोणित–रज–लुiण्ठत है आज॥4॥
उसका जगमग जगमग ताज¸ <Br/>
+
 
शोणित–रज–लुiण्ठत है आज।।4।। <Br/><Br/>
+
राजे–महराजे–सरदार¸
राजे–महराजे–सरदार¸ <Br/>
+
जो मिट गये लिये तलवार।
जो मिट गये लिये तलवार। <Br/>
+
उनके तर्पण में अविकार¸
उनके तर्पण में अविकार¸ <Br/>
+
आँखों से आँसू की धार॥5॥
आंखों से आंसू की धार।।5।। <Br/><Br/>
+
 
बढ़ता जाता विकल अपार <Br/>
+
बढ़ता जाता विकल अपार
घोड़े पर हो व्यथित सवार। <Br/>
+
घोड़े पर हो व्यथित सवार।
सोच रहा था बारम्बार¸ <Br/>
+
सोच रहा था बारम्बार¸
कैसे हो मां का उद्धार।।6।। <Br/><Br/>
+
कैसे हो माँ का उद्धार॥6॥
मैंने किया मुगल–बलिदान¸ <Br/>
+
 
लोहू से लोहित मैदान। <Br/>
+
मैंने किया मुगल–बलिदान¸
बचकर निकल गया पर मान¸ <Br/>
+
लोहू से लोहित मैदान।
पूरा हो न सका अरमान।।7।। <Br/><Br/>
+
बचकर निकल गया पर मान¸
कैसे बचे देश–सम्मान <Br/>
+
पूरा हो न सका अरमान॥7॥
कैसे बचा रहे अभिमान! <Br/>
+
 
कैसे हो भू का उत्थान¸ <Br/>
+
कैसे बचे देश–सम्मान
मेरे एकलिंग भगवान।।8।। <Br/><Br/>
+
कैसे बचा रहे अभिमान!
स्वतन्त्रता का झगड़ा तान¸ <Br/>
+
कैसे हो भू का उत्थान¸
कब गरजेगा राजस्थान! <Br/>
+
मेरे एकलिंग भगवान॥8॥
उधर उड़ रहा था वह वाजि¸ <Br/>
+
 
स्वामी–रक्षा का कर ध्यान।।9।। <Br/><Br/>
+
स्वतन्त्रता का झगड़ा तान¸
उसको नद–नाले–चट्टान¸ <Br/>
+
कब गरजेगा राजस्थान!
सकते रोक न वन–वीरान। <Br/>
+
उधर उड़ रहा था वह वाजि¸
राणा को लेकर अविराम¸ <Br/>
+
स्वामी–रक्षा का कर ध्यान॥9॥
उसको बढ़ने का था ध्यान।।10।। <Br/><Br/>
+
 
पड़ी अचानक नदी अपार¸ <Br/>
+
उसको नद–नाले–चट्टान¸
घोड़ा कैसे उतरे पार। <Br/>
+
सकते रोक न वन–वीरान।
राणा ने सोचा इस पार¸ <Br/>
+
राणा को लेकर अविराम¸
तब तक चेतक था उस पार।।11।। <Br/><Br/>
+
उसको बढ़ने का था ध्यान॥10॥
शक्तसिंह भी ले तलवार <Br/>
+
 
करने आया था संहार। <Br/>
+
पड़ी अचानक नदी अपार¸
पर उमड़ा राणा को देख <Br/>
+
घोड़ा कैसे उतरे पार।
भाई–भाई का मधु प्यार।।12।। <Br/><Br/>
+
राणा ने सोचा इस पार¸
चेतक के पीछे दो काल¸ <Br/>
+
तब तक चेतक था उस पार॥11॥
पड़े हुए थे ले असि ढाल। <Br/>
+
 
उसने पथ में उनको मार¸ <Br/>
+
शक्तसिंह भी ले तलवार
की अपनी पावन करवाल।।13।। <Br/><Br/>
+
करने आया था संहार।
आगे बढ़कर भुजा पसार¸ <Br/>
+
पर उमड़ा राणा को देख
बोला आंखों से जल ढार। <Br/>
+
भाई–भाई का मधु प्यार॥12॥
रूक जा¸ रूक जा¸ ऐ तलवार¸ <Br/>
+
 
नीला–घोड़ारा असवार।।14।। <Br/><Br/>
+
चेतक के पीछे दो काल¸
पीछे से सुन तार पुकार¸ <Br/>
+
पड़े हुए थे ले असि ढाल।
फिरकर देखा एक सवार। <Br/>
+
उसने पथ में उनको मार¸
हय से उतर पड़ा तत्काल¸ <Br/>
+
की अपनी पावन करवाल॥13॥
लेकर हाथों में तलवार।।15।। <Br/><Br/>
+
 
राणा उसको वैरी जान¸ <Br/>
+
आगे बढ़कर भुजा पसार¸
काल बन गया कुन्तल तान। <Br/>
+
बोला आँखों से जल ढार।
बोला "कर लें शोणित पान¸ <Br/>
+
रूक जा¸ रूक जा¸ ऐ तलवार¸
आ¸ तुझको भी दें बलिदान्"।।16।। <Br/><Br/>
+
नीला–घोड़ारा असवार॥14॥
पर देखा झर–झर अविकार <Br/>
+
 
बहती है आंसू की धार। <Br/>
+
पीछे से सुन तार पुकार¸
गर्दन में लटकी तलवार¸ <Br/>
+
फिरकर देखा एक सवार।
घोड़े पर है शक्त सवार।।17।। <Br/><Br/>
+
हय से उतर पड़ा तत्काल¸
उतर वहीं घोड़े को छोड़¸ <Br/>
+
लेकर हाथों में तलवार॥15॥
चला शक्त कम्पित कर जोड़। <Br/>
+
 
पैरों पर गिर पड़ा विनीत¸ <Br/>
+
राणा उसको वैरी जान¸
बोला धीरज बन्धन तोड़।।18।। <Br/><Br/>
+
काल बन गया कुन्तल तान।
"करूणा कर तू करूणागार¸ <Br/>
+
बोला "कर लें शोणित पान¸
दे मेरे अपराध बिसार। <Br/>
+
आ¸ तुझको भी दें बलिदान्"॥16॥
या मेरा दे गला उतार¸ <Br/>
+
 
"तेरे कर में हैं तलवार्"।।19।। <Br/><Br/>
+
पर देखा झर–झर अविकार
यह कह–कहकर बारंबार¸ <Br/>
+
बहती है आँसू की धार।
सिसकी भरने लगा अपार। <Br/>
+
गर्दन में लटकी तलवार¸
राणा भी भूला संसार¸ <Br/>
+
घोड़े पर है शक्त सवार॥17॥
उमड़ा उर में बन्धु दुलार।।20।। <Br/><Br/>
+
 
उसे उठाकर लेकर गोद¸ <Br/>
+
उतर वहीं घोड़े को छोड़¸
गले लगाया सजल–समोद। <Br/>
+
चला शक्त कम्पित कर जोड़।
मिलता था जो रज में प्रेम¸ <Br/>
+
पैरों पर गिर पड़ा विनीत¸
किया उसे सुरभित–सामोद।।21।। <Br/><Br/>
+
बोला धीरज बन्धन तोड़॥18॥
लेकर वन्य–कुसुम की धूल¸ <Br/>
+
 
बही हवा मन्थर अनुकूल। <Br/>
+
"करूणा कर तू करूणागार¸
दोनों के सिर पर अविराम¸ <Br/>
+
दे मेरे अपराध बिसार।
पेड़ों ने बरसाये फूल।।22।। <Br/><Br/>
+
या मेरा दे गला उतार¸
कल–कल छल–छल भर स्वर–तान¸ <Br/>
+
"तेरे कर में हैं तलवार्"॥19॥
कहकर कुल–गौरव–अभिमान। <Br/>
+
 
नाले ने गाया स–तरंग¸ <Br/>
+
यह कह–कहकर बारंबार¸
उनके निर्मल यश का गाना।।23।। <Br/><Br/>
+
सिसकी भरने लगा अपार।
तब तक चेतक कर चीत्कार¸ <Br/>
+
राणा भी भूला संसार¸
गिरा धर पर देह बिसार। <Br/>
+
उमड़ा उर में बन्धु दुलार॥20॥
लगा लोटने बारम्बार¸ <Br/>
+
 
बहने लगी रक्त की धार।।24।। <Br/><Br/>
+
उसे उठाकर लेकर गोद¸
बरछे–असि–भाले गम्भीर¸ <Br/>
+
गले लगाया सजल–समोद।
तन में लगे हुए थे तीर। <Br/>
+
मिलता था जो रज में प्रेम¸
जर्जर उसका सकल शरीर¸ <Br/>
+
किया उसे सुरभित–सामोद॥21॥
चेतक था व्रण–व्यथित अधीर।।25।। <Br/><Br/>
+
 
करता धावों पर दृग–कोर¸ <Br/>
+
लेकर वन्य–कुसुम की धूल¸
कभी मचाता दुख से शोर। <Br/>
+
बही हवा मन्थर अनुकूल।
कभी देख राणा की ओर¸ <Br/>
+
दोनों के सिर पर अविराम¸
रो देता¸ हो प्रेम–विभोर।।26।। <Br/><Br/>
+
पेड़ों ने बरसाये फूल॥22॥
लोट–लोट सह व्यथा महान््¸ <Br/>
+
 
यश का फहरा अमर–निशान। <Br/>
+
कल–कल छल–छल भर स्वर–तान¸
राणा–गोदी में रख शीश <Br/>
+
कहकर कुल–गौरव–अभिमान।
चेतक ने कर दिया पयान।।27।। <Br/><Br/>
+
नाले ने गाया स–तरंग¸
घहरी दुख की घटा नवीन¸ <Br/>
+
उनके निर्मल यश का गाना॥23॥
राणा बना विकल बल–हीन। <Br/>
+
 
लगा तलफने बारंबार <Br/>
+
तब तक चेतक कर चीत्कार¸
जैसे जल–वियोग से मीन।।28।। <Br/><Br/>
+
गिरा धर पर देह बिसार।
"हां! चेतक¸ तू पलकें खोल¸ <Br/>
+
लगा लोटने बारम्बार¸
कुछ तो उठकर मुझसे बोल। <Br/>
+
बहने लगी रक्त की धार॥24॥
मुझको तू न बना असहाय <Br/>
+
 
मत बन मुझसे निठुर अबोल।।29।। <Br/><Br/>
+
बरछे–असि–भाले गम्भीर¸
मिला बन्धु जो खोकर काल <Br/>
+
तन में लगे हुए थे तीर।
तो तेरा चेतक¸ यह हाल! <Br/>
+
जर्जर उसका सकल शरीर¸
हा चेतक¸ हा चेतक¸ हाय्"¸ <Br/>
+
चेतक था व्रण–व्यथित अधीर॥25॥
कहकर चिपक गया तत्काल।।30।। <Br/><Br/>
+
 
"अभी न तू तुझसे मुख मोड़¸ <Br/>
+
करता धावों पर दृग–कोर¸
न तू इस तरह नाता तोड़। <Br/>
+
कभी मचाता दुख से शोर।
इस भव–सागर–बीच अपार <Br/>
+
कभी देख राणा की ओर¸
दुख सहने के लिए न छोड़।।31।। <Br/><Br/>
+
रो देता¸ हो प्रेम–विभोर॥26॥
बैरी को देना परिताप¸ <Br/>
+
 
गज–मस्तक पर तेरी टाप। <Br/>
+
लोट–लोट सह व्यथा महान्¸
फिर यह तेरी निद्रा देख <Br/>
+
यश का फहरा अमर–निशान।
विष–सा चढ़ता है संताप।।32।। <Br/><Br/>
+
राणा–गोदी में रख शीश
हाय¸ पतन में तेरा पात¸ <Br/>
+
चेतक ने कर दिया पयान॥27॥
क्षत पर कठिन लवण–आघात। <Br/>
+
 
हा¸ उठ जा¸ तू मेरे बन्धु¸ <Br/>
+
घहरी दुख की घटा नवीन¸
पल–पल बढ़ती आती रात।।33।। <Br/><Br/>
+
राणा बना विकल बल–हीन।
चला गया गज रामप्रसाद¸ <Br/>
+
लगा तलफने बारंबार
तू भी चला बना आजाद। <Br/>
+
जैसे जल–वियोग से मीन॥28॥
हा¸ मेरा अब राजस्थान <Br/>
+
 
दिन पर दिन होगा बरबाद।।34।। <Br/><Br/>
+
"हाँ! चेतक¸ तू पलकें खोल¸
किस पर देश करे अभिमान¸ <Br/>
+
कुछ तो उठकर मुझसे बोल।
किस पर छाती हो उत्तान। <Br/>
+
मुझको तू न बना असहाय
भाला मौन¸ मौन असि म्यान¸ <Br/>
+
मत बन मुझसे निठुर अबोल॥29॥
इस पर कुछ तो कर तू ध्यान।।35।। <Br/><Br/>
+
 
लेकर क्या होगा अब राज¸ <Br/>
+
मिला बन्धु जो खोकर काल
क्या मेरे जीवन का काज?" <Br/>
+
तो तेरा चेतक¸ यह हाल!
पाठक¸ तू भी रो दे आज <Br/>
+
हा चेतक¸ हा चेतक¸ हाय्"¸
रोता है भारत–सिरताज।।36।। <Br/><Br/>
+
कहकर चिपक गया तत्काल॥30॥
तड़प–तड़प अपने नभ–गेह <Br/>
+
 
आंसू बहा रहा था मेह। <Br/>
+
"अभी न तू तुझसे मुख मोड़¸
देख महाराणा का हाल <Br/>
+
न तू इस तरह नाता तोड़।
बिजली व्याकुल¸ कम्पित देह।।37।। <Br/><Br/>
+
इस भव–सागर–बीच अपार
घुल–घुल¸ पिघल–पिघलकर प्राण¸ <Br/>
+
दुख सहने के लिए न छोड़॥31॥
आंसू बन–बनकर पाषाण। <Br/>
+
 
निझर्र–मिस बहता था हाय <Br/>
+
बैरी को देना परिताप¸
हा¸ पर्वत भी था मि`यमाण।।38।। <Br/><Br/>
+
गज–मस्तक पर तेरी टाप।
क्षण भर ही तक था अज्ञान¸ <Br/>
+
फिर यह तेरी निद्रा देख
चमक उठा फिर उर में ज्ञान। <Br/>
+
विष–सा चढ़ता है संताप॥32॥
दिया शक्त ने अपना वाजि¸ <Br/>
+
 
चढ़कर आगे बढ़ा महान््।।39।। <Br/><Br/>
+
हाय¸ पतन में तेरा पात¸
जहां गड़ा चेतक–कंकाल¸ <Br/>
+
क्षत पर कठिन लवण–आघात।
हुई जहां की भूमि निहाल। <Br/>
+
हा¸ उठ जा¸ तू मेरे बन्धु¸
बहीं देव–मन्दिर के पास¸ <Br/>
+
पल–पल बढ़ती आती रात॥33॥
चबूतरा बन गया विशाल।।40।। <Br/><Br/>
+
 
होता धन–यौवन का हास¸ <Br/>
+
चला गया गज रामप्रसाद¸
पर है यश का अमर–विहास। <Br/>
+
तू भी चला बना आजाद।
राणा रहा न¸ वाजि–विलास¸ <Br/>
+
हा¸ मेरा अब राजस्थान
पर उनसे उज्ज्वल इतिहास।।41।। <Br/><Br/>
+
दिन पर दिन होगा बरबाद॥34॥
बनकर राणा सदृश महान <Br/>
+
 
सीखें हम होना कुबार्न। <Br/>
+
किस पर देश करे अभिमान¸
चेतक सम लें वाजि खरीद¸ <Br/>
+
किस पर छाती हो उत्तान।
जननी–पद पर हों बलिदान।।42।। <Br/><Br/>
+
भाला मौन¸ मौन असि म्यान¸
आओ खोज निकाले यन्त्र <Br/>
+
इस पर कुछ तो कर तू ध्यान॥35॥
जिससे रहें न हम परतन्त्र। <Br/>
+
 
फूंके कान–कान में मन्त्र¸ <Br/>
+
लेकर क्या होगा अब राज¸
बन जायें स्वाधीन–स्वतन्त्र।।43।। <Br/><Br/>
+
क्या मेरे जीवन का काज?"
हल्दीघाटी–अवनी पर <Br/>
+
पाठक¸ तू भी रो दे आज
सड़ती थीं बिखरी लाशें। <Br/>
+
रोता है भारत–सिरताज॥36॥
होती थी घृणा घृणा को¸ <Br/>
+
 
बदबू करती थीं लाशें।।44।। <Br/><Br/>
+
तड़प–तड़प अपने नभ–गेह
 +
आँसू बहा रहा था मेह।
 +
देख महाराणा का हाल
 +
बिजली व्याकुल¸ कम्पित देह॥37॥
 +
 
 +
घुल–घुल¸ पिघल–पिघलकर प्राण¸
 +
आँसू बन–बनकर पाषाण।
 +
निझर्र–मिस बहता था हाय
 +
हा¸ पर्वत भी था मि`यमाण॥38॥
 +
 
 +
क्षण भर ही तक था अज्ञान¸
 +
चमक उठा फिर उर में ज्ञान।
 +
दिया शक्त ने अपना वाजि¸
 +
चढ़कर आगे बढ़ा महान्॥39॥
 +
 
 +
जहाँ गड़ा चेतक–कंकाल¸
 +
हुई जहाँ की भूमि निहाल।
 +
बहीं देव–मन्दिर के पास¸
 +
चबूतरा बन गया विशाल॥40॥
 +
 
 +
होता धन–यौवन का हास¸
 +
पर है यश का अमर–विहास।
 +
राणा रहा न¸ वाजि–विलास¸
 +
पर उनसे उज्ज्वल इतिहास॥41॥
 +
 
 +
बनकर राणा सदृश महान
 +
सीखें हम होना कुबार्न।
 +
चेतक सम लें वाजि खरीद¸
 +
जननी–पद पर हों बलिदान॥42॥
 +
 
 +
आओ खोज निकाले यन्त्र
 +
जिससे रहें न हम परतन्त्र।
 +
फूँके कान–कान में मन्त्र¸
 +
बन जायें स्वाधीन–स्वतन्त्र॥43॥
 +
 
 +
हल्दीघाटी–अवनी पर
 +
सड़ती थीं बिखरी लाशें।
 +
होती थी घृणा घृणा को¸
 +
बदबू करती थीं लाशें॥44॥
 +
</poem>

10:48, 12 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

त्रयोदश सर्ग: सगजो

कुछ बचे सिपाही शेष¸
हट जाने का दे आदेश।
अपने भी हट गया नरेश¸
वह मेवाड़–गगन–राकेश॥1॥

बनकर महाकाल का काल¸
जूझ पड़ा अरि से तत्काल।
उसके हाथों में विकराल¸
मरते दम तक थी करवाल॥2॥

उसपर तन–मन–धन बलिहार
झाला धन्य¸ धन्य परिवार।
राणा ने कह–कह शत–बार¸
कुल को दिया अमर अधिकार॥3॥

हाय¸ ग्वालियर का सिरताज¸
सेनप रामसिंह अधिराज।
उसका जगमग जगमग ताज¸
शोणित–रज–लुiण्ठत है आज॥4॥

राजे–महराजे–सरदार¸
जो मिट गये लिये तलवार।
उनके तर्पण में अविकार¸
आँखों से आँसू की धार॥5॥

बढ़ता जाता विकल अपार
घोड़े पर हो व्यथित सवार।
सोच रहा था बारम्बार¸
कैसे हो माँ का उद्धार॥6॥

मैंने किया मुगल–बलिदान¸
लोहू से लोहित मैदान।
बचकर निकल गया पर मान¸
पूरा हो न सका अरमान॥7॥

कैसे बचे देश–सम्मान
कैसे बचा रहे अभिमान!
कैसे हो भू का उत्थान¸
मेरे एकलिंग भगवान॥8॥

स्वतन्त्रता का झगड़ा तान¸
कब गरजेगा राजस्थान!
उधर उड़ रहा था वह वाजि¸
स्वामी–रक्षा का कर ध्यान॥9॥

उसको नद–नाले–चट्टान¸
सकते रोक न वन–वीरान।
राणा को लेकर अविराम¸
उसको बढ़ने का था ध्यान॥10॥

पड़ी अचानक नदी अपार¸
घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार¸
तब तक चेतक था उस पार॥11॥

शक्तसिंह भी ले तलवार
करने आया था संहार।
पर उमड़ा राणा को देख
भाई–भाई का मधु प्यार॥12॥

चेतक के पीछे दो काल¸
पड़े हुए थे ले असि ढाल।
उसने पथ में उनको मार¸
की अपनी पावन करवाल॥13॥

आगे बढ़कर भुजा पसार¸
बोला आँखों से जल ढार।
रूक जा¸ रूक जा¸ ऐ तलवार¸
नीला–घोड़ारा असवार॥14॥

पीछे से सुन तार पुकार¸
फिरकर देखा एक सवार।
हय से उतर पड़ा तत्काल¸
लेकर हाथों में तलवार॥15॥

राणा उसको वैरी जान¸
काल बन गया कुन्तल तान।
बोला "कर लें शोणित पान¸
आ¸ तुझको भी दें बलिदान्"॥16॥

पर देखा झर–झर अविकार
बहती है आँसू की धार।
गर्दन में लटकी तलवार¸
घोड़े पर है शक्त सवार॥17॥

उतर वहीं घोड़े को छोड़¸
चला शक्त कम्पित कर जोड़।
पैरों पर गिर पड़ा विनीत¸
बोला धीरज बन्धन तोड़॥18॥

"करूणा कर तू करूणागार¸
दे मेरे अपराध बिसार।
या मेरा दे गला उतार¸
"तेरे कर में हैं तलवार्"॥19॥

यह कह–कहकर बारंबार¸
सिसकी भरने लगा अपार।
राणा भी भूला संसार¸
उमड़ा उर में बन्धु दुलार॥20॥

उसे उठाकर लेकर गोद¸
गले लगाया सजल–समोद।
मिलता था जो रज में प्रेम¸
किया उसे सुरभित–सामोद॥21॥

लेकर वन्य–कुसुम की धूल¸
बही हवा मन्थर अनुकूल।
दोनों के सिर पर अविराम¸
पेड़ों ने बरसाये फूल॥22॥

कल–कल छल–छल भर स्वर–तान¸
कहकर कुल–गौरव–अभिमान।
नाले ने गाया स–तरंग¸
उनके निर्मल यश का गाना॥23॥

तब तक चेतक कर चीत्कार¸
गिरा धर पर देह बिसार।
लगा लोटने बारम्बार¸
बहने लगी रक्त की धार॥24॥

बरछे–असि–भाले गम्भीर¸
तन में लगे हुए थे तीर।
जर्जर उसका सकल शरीर¸
चेतक था व्रण–व्यथित अधीर॥25॥

करता धावों पर दृग–कोर¸
कभी मचाता दुख से शोर।
कभी देख राणा की ओर¸
रो देता¸ हो प्रेम–विभोर॥26॥

लोट–लोट सह व्यथा महान्¸
यश का फहरा अमर–निशान।
राणा–गोदी में रख शीश
चेतक ने कर दिया पयान॥27॥

घहरी दुख की घटा नवीन¸
राणा बना विकल बल–हीन।
लगा तलफने बारंबार
जैसे जल–वियोग से मीन॥28॥

"हाँ! चेतक¸ तू पलकें खोल¸
कुछ तो उठकर मुझसे बोल।
मुझको तू न बना असहाय
मत बन मुझसे निठुर अबोल॥29॥

मिला बन्धु जो खोकर काल
तो तेरा चेतक¸ यह हाल!
हा चेतक¸ हा चेतक¸ हाय्"¸
कहकर चिपक गया तत्काल॥30॥

"अभी न तू तुझसे मुख मोड़¸
न तू इस तरह नाता तोड़।
इस भव–सागर–बीच अपार
दुख सहने के लिए न छोड़॥31॥

बैरी को देना परिताप¸
गज–मस्तक पर तेरी टाप।
फिर यह तेरी निद्रा देख
विष–सा चढ़ता है संताप॥32॥

हाय¸ पतन में तेरा पात¸
क्षत पर कठिन लवण–आघात।
हा¸ उठ जा¸ तू मेरे बन्धु¸
पल–पल बढ़ती आती रात॥33॥

चला गया गज रामप्रसाद¸
तू भी चला बना आजाद।
हा¸ मेरा अब राजस्थान
दिन पर दिन होगा बरबाद॥34॥

किस पर देश करे अभिमान¸
किस पर छाती हो उत्तान।
भाला मौन¸ मौन असि म्यान¸
इस पर कुछ तो कर तू ध्यान॥35॥

लेकर क्या होगा अब राज¸
क्या मेरे जीवन का काज?"
पाठक¸ तू भी रो दे आज
रोता है भारत–सिरताज॥36॥

तड़प–तड़प अपने नभ–गेह
आँसू बहा रहा था मेह।
देख महाराणा का हाल
बिजली व्याकुल¸ कम्पित देह॥37॥

घुल–घुल¸ पिघल–पिघलकर प्राण¸
आँसू बन–बनकर पाषाण।
निझर्र–मिस बहता था हाय
हा¸ पर्वत भी था मि`यमाण॥38॥

क्षण भर ही तक था अज्ञान¸
चमक उठा फिर उर में ज्ञान।
दिया शक्त ने अपना वाजि¸
चढ़कर आगे बढ़ा महान्॥39॥

जहाँ गड़ा चेतक–कंकाल¸
हुई जहाँ की भूमि निहाल।
बहीं देव–मन्दिर के पास¸
चबूतरा बन गया विशाल॥40॥

होता धन–यौवन का हास¸
पर है यश का अमर–विहास।
राणा रहा न¸ वाजि–विलास¸
पर उनसे उज्ज्वल इतिहास॥41॥

बनकर राणा सदृश महान
सीखें हम होना कुबार्न।
चेतक सम लें वाजि खरीद¸
जननी–पद पर हों बलिदान॥42॥

आओ खोज निकाले यन्त्र
जिससे रहें न हम परतन्त्र।
फूँके कान–कान में मन्त्र¸
बन जायें स्वाधीन–स्वतन्त्र॥43॥

हल्दीघाटी–अवनी पर
सड़ती थीं बिखरी लाशें।
होती थी घृणा घृणा को¸
बदबू करती थीं लाशें॥44॥