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"स्नुही / राधावल्लभः त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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न सन्ति निम्बाश्वत्थवटादयो महातरवः
देवदारूणामत्र कथैव का
परितो दूरं यावत्
दन्दह्यमानो घर्मः
मरुश्च निगिलन्निव सर्वम्।
सुरसैव मुखं व्यादाय प्रसरता मरुणा
आस्ते च
इयमेकाकिनी युध्यन्ती
स्नुही।