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त्याॻु वैराॻु जूं तमन्नाऊं
इअं बि जकड़े रखनि तक़ाज़ाऊं!
रंग, सुरहाणि, गुल ऐं माक फुड़ा,
मन जे अमृत जूं नरम धाराऊं!
मुरिक ख़ल्के थी ज़िस्म जो ॿंधन,
किअं ॾिठाऊं ऐं किअं सुञाताऊं!
वेढ़ि आंचल ऐं तन लिकाए हलु,
पाठ पूज़/ा खे के त मानाऊं!
नेण कंहिं आरजूअ जा पाछोला,
वेस गेडू, संन्यास, माल्हाऊं!
प्रभु-दर्शन ते भीड़ ॾिसु हासिद,
भेट चाढ़े, थे मोट वरिताऊं!