भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जुम्मे को इतवार बनाकर / राजश्री गौड़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजश्री गौड़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:40, 6 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

जुम्मे को इतवार बना कर क्या होगा,
ये बातें बेकार बना कर क्या होगा।

लाखों गुल मुरझाये हों जब दुनिया के,
घर में इक गुलजार बना कर क्या होगा।

कश्ती अगर डुबोने वाले अपने हैं,
फिर कोई पतवार बना कर क्या होगा।

हाथों का बल अगर हमारे छूट गया,
आँखों को अँगार बना कर क्या होगा।

तन्हाई से इश्क हो गया जब हमको,
भीड़ का फिर संसार बना कर क्या होगा।

हुई दोस्ती जब लाचारी से तेरी,
फिर कोई त्योहार बना कर क्या होगा।