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"अल्हड़ रूह / निधि सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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05:09, 6 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

कभी कभी मेरी रूह
अपना ज़िस्म उतार
तुम्हारे पास चली जाती है...

जब वो लौटती है
तो तबस्सुम में भीगी
जाने कितने अफ़साने समेटे
खुश्बू से महकती
पलकों पर रौशनी की बेशुमार किरचें सजाये...

और मैं उसे यूँ देख हैरान परेशां
गुनहगार सी तकती हूँ...

अब वो अपने कुछ जिक्र छुपाने लगी है मुझसे
अलहदा हो गई हैं उसकी खुशियाँ...

कभी कभी लगता है मेरी रूह एक अल्हड लड़की हो गई है
और मैं उसकी फिक्रमंद माँ...