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मैं हूँ तुम्हारा पूर्वज
कही बर्फ से ढका तो कही हरियाली से
कही शुष्क तो कही लाल या काली
हिमालय,अरावली,सत्पुड़ा,शिवालिक
कितने नाम है मेंरे
मैं अविचल खडा रहता हूँ
तुम्हारी चलने की रफ्तार ने
मुझे छलनी करना शुरु कर दिया
कही गुफा तो कही सुरंग
कोई मुझे चीर कर रास्ता बना रहा
तो कोई घेरकर तालाब
अब मैं शायद बूढा हो गया हूँ
मेंरे लायक कोई आश्रम नही जहा
तू मुझे भी रख देता
पुरानी चीज तुम्हे पसंद नही
किसी जगह रखने की तुम्हारी आदत हो गई है
अब इस पाषान हृदय को
किसी संरक्षक की जरूरत नही
मेंरी मौत का इंतज़ार है तुम्हे
मर जाऊगा मैं अपने आप
मरने दो मुझे प्रकृति की मौत
मर के मिट्टी ही बनेगी
जीने दो अपने इस अभिभावक को