"होमोसेपियंस का सफ़र / विनीता परमार" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनीता परमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:36, 7 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
तय करते करते पहुँच गया
मैं कंक्रीट के जंगल में
जहाँ शेर और सियार की तरह
खून के प्यासे बैठे है,
यहा मैं अपनी पिछली यादों में जीता हूँ,
सपने में देखता हूँ मिट्टी से लिपा मकान
बावड़ी के किनारे जामुन कुतरती गिलहरी
मैं खेतों के मेड़ के किनारे खड़े
सोचने लगा कहाँ गये वो हरे टिड्डे
जिसे मैं राम जी की चिड़िया कहा करता था।
छप्पड़ की ओरी से
गिरते पानी की बूँदों से बनते छोटे गड्ढे को देखकर
सोचता था धरती की गर्भ को
शीतल करेगा ये पानी।
अब ये पानी किधर जाता है,
पत्थरों को चीरने की जदोजहद में नाले सड़कों को लीलते है,
मैं इस कशमकश में
अपनी डोन्नगी को बिन पत्तवार पाता हूँ।
रात्री के अन्धेरे में,शून्य की नाद में
सारे साजों की ध्वनि के बीच
अपनी हृदय तरंग को सुनता हूँ
सुनाइ पड़ रही है भावहीन निनाद।