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"होमोसेपियंस का सफ़र / विनीता परमार" के अवतरणों में अंतर

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तय करते करते पहुँच गया
मैं कंक्रीट के जंगल में
जहाँ शेर और सियार की तरह
खून के प्यासे बैठे है,
यहा मैं अपनी पिछली यादों में जीता हूँ,
सपने में देखता हूँ मिट्टी से लिपा मकान
बावड़ी के किनारे जामुन कुतरती गिलहरी
मैं खेतों के मेड़ के किनारे खड़े
सोचने लगा कहाँ गये वो हरे टिड्डे
जिसे मैं राम जी की चिड़िया कहा करता था।
छप्पड़ की ओरी से
गिरते पानी की बूँदों से बनते छोटे गड्ढे को देखकर
सोचता था धरती की गर्भ को
शीतल करेगा ये पानी।
अब ये पानी किधर जाता है,
पत्थरों को चीरने की जदोजहद में नाले सड़कों को लीलते है,
मैं इस कशमकश में
अपनी डोन्नगी को बिन पत्तवार पाता हूँ।
रात्री के अन्धेरे में,शून्य की नाद में
सारे साजों की ध्वनि के बीच
अपनी हृदय तरंग को सुनता हूँ
सुनाइ पड़ रही है भावहीन निनाद।