भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम सिर्फ़ नाचो / बीरेन्द्र कुमार महतो" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बीरेन्द्र कुमार महतो |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:15, 10 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

तुम दूसरों को
रिझाने के लिए बनी हो
अपनी थकान,
मिटाने के बहाने
गीत-नृत्य-संगीत की ताल पर
मेरी थकान मिटाओं,
अपनी हाथों से
मदिरा का,
रस-पान कराओ,
मैं रिझूँ
अपनी प्यास बुझाउँ,
इसलिए,
तुम सिर्फ नाचो
और मैं तुम्हारी
गदराई काया को
देखता रहूँ,
हॉं, देखता रहूँ,
तुम्हारी स्तनों की उभारों को
कमर की चिकनाहटों को
देखता रहूँ,
हॉं, देखता रहूँ,
तुम्हारी नशीली नयनों में
और अपने को डूबोता रहॅ
टूटी-लटकी काया का
मदिरा पान करता रहॅू
तुम्हारी तन-मन को
निचोड़ता रहूँ
तब तक,
तुम सिर्फ और सिर्फ नाचो...!