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"धर्म / नीता पोरवाल" के अवतरणों में अंतर

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03:38, 21 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

गूँज सकता था
कण-कण में
मेरे जिस वाद्य यंत्र से
सुरीला संगीत
हत भाग!
आज फूट रहा हृदयभेदी प्रलाप
हर ओर
बहरा करता संवेदनाओं को
अवरुद्ध करता मार्ग रौशनियों का
मगन हो
तुम मद में चूर हो
आज रचते बेसुरी कर्कश धुनों को
मेरे तानपूरे पर
पर देखो
मैं रक्त रंजित कर रहा हूँ
तुम्हारी उँगलियों के साथ
समूचे समय को भी