भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विडम्बना / नीता पोरवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीता पोरवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:58, 22 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

चढ़ता सूरज
एक निरंकुश शासक सा
“मै ऐसा ही हूँ “
दंभ से लाल पीला हो तमतमाता
गढता है हर रोज रण नीतियाँ
अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीने की

फिर फैलाता है निर्द्वंद रार
अपने मद में चूर
भून देता है अपनों के अरमान
और सांझ ढले
खुद को डुबो देता
समंदर के खारे द्रव्य में

पथराई धरा
अपने नन्हे छौनों को
मुरझाया देख
सब बिसरा
अपनी खंगाली हुई
समूची शीतलता उडेलती
उन्हें अंक में सहेजती
शून्य में ताकती ही रह जाती है