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03:02, 22 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

आज
फिर
भोर की लाली
मद्धम क्यों है?

क्षितिज पर
सुरज
भी चेहरा
छुपाता क्यों है?

पंछियों का
कलरव
भी सहमा-सहमा सा
क्यों है?

शायद
कुछ लाचार बूढों ने
आसमान तले ठिठुर कर
दम तोड़ा होगा कहीं

शायद
कुछ नन्हे कन्धों पर
आ गया होगा फिर
कबाड़ बीनने का बोरा कहीं

शायद
कोई पगली
शिकार हुई होगी
फिर किसी
दरिंदगी की कहीं

हाँ
शायद
इसी लिए
प्रकृति भी शर्मिन्दा
बैठी होगी कहीं