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"गिद्ध / शिवनारायण / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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मनझमान सांझ रोॅ
आखिरलका किरिण
बुढ़वा गाछी के
एकटा सुक्खा ठारी पर
असकरिये बेठली
असम, पंजाब, मिजोरम
आरो गोरखालैण्ड जेन्होॅ भूखण्डोॅ में
उतरतें अन्हरिया रोॅ
ओझरैलोॅ लकीर केॅ
बेवश आँखी सें निहारी रहलोॅ छै
आरो
नगीचे के दोसरोॅ
ढकमोरल गाछी के ठारी सिनी में
चिड़िया सिनी के चहकवोॅ
बोंगोॅ शोर के शक्ल में
अपन्है बुनियाद केॅ
चुनौती देतें
लाल सरंग में
गूंजी रहलोॅ छै।

ललका सरंग में उड़तें

गिद्धोॅ के भेदिया आँख
बूढ़वा गाछी के
सुक्खा ठारी पर बैठली
मनझमान सांझ रोॅ
निस्तेज बनतेॅ अस्तित्व केॅ
परखी रहलोॅ छै, कि कुछुवे देरी में वैं
कै एक ठो असम, पंजाब, मिजोरम
आरो गोरखालैण्ड जेन्होॅ भूखंडोॅ केॅ
अपनोॅ पंजा में जकड़ी लेतै
ढकमोरलोॅ गाछी सें ऐतें
चिड़ियासिनी के चहचहैवोॅ केॅ।

आपनोॅ आवाजोॅ सें आतंकित करी
सौंसे सरंगोॅ में
आपनोॅ साम्राज्य
स्थापित करै के उन्माद में
अपनो डरावना डैनोॅ फैलैलेॅ
आरो कालचक्र रोॅ गति
फेनु कुच्छु वक्त लेली
सहमी जैतै
हेमाल हवा के
झोंका में ठिठुरतें
बुढ़वा गाछ के
ठारी पर असकरी बैठली
साँझ के आखिरलका लाली
आबेॅ आरो
मनझमान होय गेलोॅ छै।