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"किंछा / शिवनारायण / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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युग भेलै
जबेॅ हम्में अपनोॅ यात्रा शुरु करलेॅ छेलां
कत्तेॅ-कत्तेॅ लोगोॅ के साथ
हम्में बढ़ले गेलियै
लोग छुटतें गेलै
मद्धे में टूटी कत्तेॅ बिखरतें गेलै
आय आपनोॅ यात्रा में
हम्में रही गेलोॅ छी असकरे
तहियो बढ़ले जाय छी
कि उगेॅ भोरकवा
असकरोॅ मोॅन केॅ यात्रा
देह के थकान केॅ
रही-रही बढ़ाय दै छै।

हमरोॅ इर्द-गिर्द भीड़ छै
मतरकि मीत
आदमी जबेॅ भीतरे सें
असकरोॅ होय छै नी
तबेॅ बाहरियो भीड़
आपनोॅ अर्थ खोय दै छै।

हम्में तहियो बढ़तें रहै छी
मजकि मॉेन के है अकेलापन
गोड़ के गति मंद्धिम करी दै छै
तोरहो तेॅ
यहा हालत छौं नी मीत
तेॅ चलोॅ
आबेॅ
हम्में आपनोॅ थकान मिटाय लौं
आरो तन-मन के साथी बनी
जिनगी के बाकी सफर पुराय लौं।