भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चाँदनी लजाय गेलै / शिवनारायण / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवनारायण |अनुवादक=अमरेन्द्र |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:38, 27 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
देखलिचै
पिछुलका छज्जा रोॅ एक कोण्टा में
सिर पटकी रहलोॅ छै एक मुट्ठी चाँदनी
आरो ओकरा देखतें
ठगली रं ठाड़ी छै
सरङगोॅ पर आदिम याद।
आय फेनू/हवा भरी भै गेलोॅ छै
सालो पुरानोॅ गन्ध में
कि भरखर राती के/दूधिया उजास में
दू मनहर नर-मादा वाला छवि
आपस में बतियैतें रहेॅ
सौंसे दुनियां सें अजान
तबेॅ पलाश आरो अमलतास के
पुष्पवर्षा में भींगयोॅ/बनाय दै छै काठ
ऊ सृष्टि के एक क्षण लेली।
कि तखनिये मेघदंश सें
चोटैलोॅ चाँद जाय गिरै छै झाड़ी में
शायत् चाँदनी लजाय गेलै
याद भरमाय गेलै।