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नदी-नदी रौद
आ कछारी में छाया
पोर-पोर पीर भँसै
मोॅन बसै माया!
सागरे रँ किंछा
मुट्ठी भर ओॅन छै
किस्त-किस्त कर्जा में
चुकै सब्हे धोॅन छै।
घर बैठली बहिनी रोॅ
क्वारी ठो आँखी में
कंगन के लाज छै
फागुन मन-पांखी में
देहरी पर दिया भले
करियैलोॅ काया।
कत्तेॅ तेॅ साल गेलै
पाहुन नै ऐलै
मौसम नै कोयलो ठो
गेलै बिन गैलै
रेते रेत ही जेन्होॅ
सपनाही छै मन में
आबी मेह बरसी जाय
जानेॅ कोय सावन में
राह-राह चन्दन-वन
भरमी जाय मॉेन, बड़ी माया।
सग्है संबंधी कन रेहन छै
अपनोॅ घर-द्वार
परदेशी बाबू कन आन-जान
आदर सत्कर
आजादी के हेनोॅ
ई अर्द्धशती मौज में
उब छै नैया ठो बुद्धि रोॅ
सदी-शान-फौजोॅ में
पगुरावै रथी मोॅन
कुछुवो नै लब्बोॅ, नै नाया।