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− | * | + | * ठंडी शिराओं के भीतर से / सुदीप बनर्जी |
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− | * | + | * बूर्ज्वा समझौता / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * पवित्र बिल्ली / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * दायरे से बाहर / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * व्यर्थ वाचाल / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * पराजय की विरासत में / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * आइने-दर-आइने / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * ऐसे भी दिन होते हैं / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * पौ फटती है / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * अपने बाद / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * मातम में शरीक होना चाहता हूँ / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * खूँसट फ्रैंको भी जाता रहा / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * टंगी हुई सीढ़ियाँ / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * हाथी दाँत के माँझी / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * इस साल जाम्बूखांदन में भी / सुदीप बनर्जी |
− | * | + | * सारे अमरूद खा लिए हैं / सुदीप बनर्जी |
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07:30, 30 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
शब-गश्त
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रचनाकार | सुदीप बनर्जी |
---|---|
प्रकाशक | संभावना प्रकाशन, रेवती कुंज, हापुड़-245101 |
वर्ष | 1980 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | |
विविध |
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- अश्व गंध / सुदीप बनर्जी
- खाकी छायाएँ / सुदीप बनर्जी
- आर्डर-शीट / सुदीप बनर्जी
- नर्क की दहलीज़ नहीं है/ सुदीप बनर्जी
- जिस दिन / सुदीप बनर्जी
- लौट आने का सुकून / सुदीप बनर्जी
- बारिश / सुदीप बनर्जी
- शब-गश्त. / सुदीप बनर्जी
- चीज़ों का हटात् होना / सुदीप बनर्जी
- अमीर खुसरो के थोड़ा पहले / सुदीप बनर्जी
- इस दीवाल का व्याख्या करनी है / सुदीप बनर्जी
- मकान मना करते हैं / सुदीप बनर्जी
- हम पेड़ को वृक्ष भी कह सकते हैं / सुदीप बनर्जी
- यदि यह एक शहर है / सुदीप बनर्जी
- तुम्हारे कितने सारे दाँत हैं / सुदीप बनर्जी
- फव्वारा नहीं तुम्हारी हँसी / सुदीप बनर्जी
- पत्थरों के बीच / सुदीप बनर्जी
- उसे तामीर करने दो / सुदीप बनर्जी
- गृह-प्रवेश की रस्मों ने / सुदीप बनर्जी
- कोई सूर्योदय नहीं / सुदीप बनर्जी
- इस पागल कर देने वाली सुन्दरता में / सुदीप बनर्जी
- ठंडी शिराओं के भीतर से / सुदीप बनर्जी
- दरवाज़ा खोलते हुए / सुदीप बनर्जी
- अपने पदचापों से / सुदीप बनर्जी
- बूर्ज्वा समझौता / सुदीप बनर्जी
- पवित्र बिल्ली / सुदीप बनर्जी
- दायरे से बाहर / सुदीप बनर्जी
- व्यर्थ वाचाल / सुदीप बनर्जी
- पराजय की विरासत में / सुदीप बनर्जी
- आइने-दर-आइने / सुदीप बनर्जी
- ऐसे भी दिन होते हैं / सुदीप बनर्जी
- पौ फटती है / सुदीप बनर्जी
- अपने बाद / सुदीप बनर्जी
- मातम में शरीक होना चाहता हूँ / सुदीप बनर्जी
- खूँसट फ्रैंको भी जाता रहा / सुदीप बनर्जी
- टंगी हुई सीढ़ियाँ / सुदीप बनर्जी
- हाथी दाँत के माँझी / सुदीप बनर्जी
- इस साल जाम्बूखांदन में भी / सुदीप बनर्जी
- सारे अमरूद खा लिए हैं / सुदीप बनर्जी