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जानते हो यार
मैंने विरासत में क्या पाया है?
जहालत मुफ़लिसी बेरुख़ी
तृषकार, ईष्या, कुंठा आदि- आदि
शब्दों की निरंतर लम्बी होती सूची
जो भविष्य में...
एक विस्तृत / विशाल
शब्दकोष का स्थान ले शायद?
तुम सोचते हो
सहानुभूति पाने को गढ़े हैं ये शब्द मैंने!
मगर नहीं दोस्त
ये वास्तविकता नहीं है
भोगा है मैंने इन्हें
एक अरसे से हृदय में उठे मुर्दा विचारों के
यातना शिविर में प्रताड़ना की तरह
तब कहीं पाया है इनके अर्थों में अहसास चाबुक-सा
और जुटा पाया हूँ साहस इन्हें गढ़ने का
कविता यूँ ही नहीं फूट पड़ती
जब तक ' अंतर ' में किसी के
मरने का अहसास न हो
और सांसों में से लाश के सड़ने की सी
दुर्गन्ध न आ जाये...
तब तक कहाँ उतर पाती है
काग़ज़ पर कोई रचना ऐ दोस्त?