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मेरे आँगन उतरा चंदा
सिमटा छोटे से बिछोने में
गोल गोल सी अँखियाँ
जिनमे सिमटी सारी दुनिया
संग उसके खेले बूढी काकी
ताई, चाची हो या मुनिया
कभी रोये कभी झट हंस जाए
इत् उत् उत् इत् गर्दन मटकाए
जीभ लपलपाए और किलकाये
मोह लिया है सबका ही मन
उस सुन्दर, चपल सलोने ने
मैंने भी तो अपना बचपन ढूंढा
उसके खेल खिलौने में
मेरे आँगन उतरा चंदा
सिमटा छोटे से बिछोने में
सुन ओ चंदा घर तू मेरा
रोशन ऐसे ही करता चल
जो तू रूठे इस घर से
आये कभी ना ऐसा पल
उठूँ तो पहले देखूं तुझको
सो जाऊँ तो सोचूँ सपने में
घर के साथ उधम करता फिरे तू
मेरे उर सूने सूने में