भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भाषा में बनती औरत / सुजाता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुजाता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:52, 21 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण

चुस्त टीशर्ट में जब वह आया
उसके चेहरे पर से गायब था आदमी

कुहनी मारकर वे मुझे बोलीं-
बड़ा औरतबाज़ है,
बच कर रहना,
तुम्हें औरत होने की तमीज़ नहीं है।
और इस तरह धकिया दिया उन्होंने
भाषा में बनती औरत को
थोड़ा और नीचे
और निश्चिंत हो गईं
कि अब कुछ ग़लत नहीं हो सकेगा।

लेकिन कभी वापस नहीं जा सकीं घर वे
औरत होने की शर्मिंदगी लिए बिना
ठीक वैसे जैसे हर सुबह लौटती थीं
एक ग्लानि लिए घर से।