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"हँस कर और जियो / रामस्वरूप 'सिन्दूर'" के अवतरणों में अंतर

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09:04, 29 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण

रो-रो मरने से क्या होगा
हँस कर और जियो!
वृद्ध क्षणों को बाहुपाश में
कस कर और जियो!

रक्त दौड़ता अभी रगों में, उसे न जमने दो,
बाहर जो भी हो, पर भीतर लहर न थमने दो,
चक्रव्यूह टूटता नहीं, तो
धंस कर और जियो!

श्वास जहाँ तक बहे, उसे बहने का मौका दो,
जहाँ डूबने लगे, उसे कविता की नौका दो,
गुंजन-जन्मे संजालों में
फँस कर और जियो!

टूटे सपने जीने का अपना सुख होता है,
सूरज, धुन्ध-धुन्ध आँखें शबनम से धोता है,
ज्वार-झेलते अंतरीप में
बस-कर और जियो!