भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़िन्दगी रहेगी ही / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामस्वरूप ‘सिन्दूर’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:55, 17 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण
ज़िन्दगी रहेगी ही सिलसिला गुनाहों का!
दिल ग़ुलाम होता है फ़ितरती निगाहों का!
और क्या इनाम मिले बेशकीमती फन का,
काम तो तुम्हारा है, नाम बादशाहों का!
माँगना ही है तो, माँग तू फ़कीरों से,
आज के ज़माने में दिल ग़रीब शाहों का!
ये जहाँ परीशाँ है आपके फ़सानों से,
हर अदीब होता है देवता गुनाहों का!
कौन 'सिन्दूर' मान ले तू अज़ीम शायर है,
दिन गए हक़ीक़त के, वक्त है गवाहों का!