भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नंगा सलीब / मंगलमूर्ति" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगलमूर्ति |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:55, 19 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण

सोचता हूँ एक लम्बी कविता लिखूं-
पर जो इस जीवन से थोड़ी छोटी हो,
जिससे दुहरा-तिहरा कर नाप सकूं
इस जीवन की पूरी लम्बाई को
लेकिन कैसे नापूंगा उसकी लम्बाई-
क्या वह लम्बा होगा किसी ठूँठ जितना
झड चुके होंगे जिसकी चंचरी से
हरे, मुलायम, कोमल सभी पत्ते-
और वह खडा होगा विस्मित-चिंतित
एक कौवा-उड़ावन जैसा ठठरी-सा-
झींखता-घूरता-झुँझलाता-बदहवास
एक नंगे सलीब की तरह अकेला ?

समझ में नहीं आता
क्या उसका अपना जीवन ही
टंगा होगा उस सलीब पर?

नहीं, नहीं, उसको नापना
उसकी पूरी पैमाइश करना
कविता के बूते की बात नहीं!

कविता भला कैसे नाप सकेगी
उसकी अनिश्चित, अधूरी लम्बाई?

तब फिर क्या होगा ?