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नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन | नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन | ||
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प्राण इही जान इही, सुद्ध हवा देत इही | प्राण इही जान इही, सुद्ध हवा देत इही | ||
::::झिन काट रुखराई, अउ आमाडार रे। | ::::झिन काट रुखराई, अउ आमाडार रे। |
16:06, 18 जनवरी 2017 का अवतरण
(1)
नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन
जीवजन्तु कलपत, सुन ले पुकार रे।
प्राण इही जान इही, सुद्ध हवा देत इही
झिन काट रुखराई, अउ आमाडार रे।
कल-पत हे चिराई, घर द्वार टूटे सबो
संसो-छाए लईका के, आंसु के बयार रे।
जीव के अधार इही, नानपन पढ़े सबो
आज सबो पढ़लिख, होगे हे गवार रे!
(2)
पर घर नास कर, छाबे जब घर संगी
काहापाबे सुखसांती, बिछा जही प्यार रे।
अपन बनौकी बर, दुख तैहा ओला देहे
भोग-लोभ करकर , बिगाड़े संसार रे।
सबोके महत्व हे जी, खाद्य श्रृंखला जाल म
छोटे नोहै कहुं जीव, करले बिचार रे।
नदि नाला जंगल ले, उपजे गांव गांव ह
रुखराई जीवजन्तु, आज तै सवार रे।