भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हम सूरज हैं / प्रमोद तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:35, 23 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
हम सूरज हैं
हम ढले नहीं
हम सूरज हैं ...
हम जिस क्षण से
अपने पैरों पर खड़े हुए
उस क्षण से अब तक
उसी ठौर पर बड़े हुए
हम पग भर भी तो टले नहीं
तुम मेरी आँखों से कब
ओझल होते हो
ये तुम ही हो
जो आँख बंद कर
सोते हो
हम आँखों-आँखों
पले नहीं
तुम कहते हो
हम केवल दहते रहतेहैं
हम दहते हैं तो
नदिया झरने बहते हैं
हिमखण्ड गले
हम गले नहीं
हम रोज तुम्हें
सिंदूरी पूरब देते हैं
बदले में तुमसे
पश्चिम का
विष लेते हैं
फिर भी तुम
फूले-फले नहीं