भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आखिर कितना सहता / प्रमोद तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:35, 23 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

आकार बिना
सत्कार बिना
आखिर कब तक
रहता पानी
आँखों से
बरबस ढुलक पड़ा
आखिर कितना
सहता पानी

ये गंगा जल की
धारा भी
ये पैमानों की
प्यारा भी
मीठा-मीठा
फब्बारा भी
खारा-ाारा
गुब्बारा भी
हर घाट निछावर
आप रहे
फिर भी सूरज का
ताप सहे
बनकर बादल
उड़ गया कहीं
आखिर कितना
दहता पानी

ऊँची-नीची
इन राहों का
गहरी से गहरी
थाहों का
ये घेरा प्यासी
बाहों का
ये है गवाह
चरवाहों का
फिर भी अटका
जब-जब भटका
भर गया
कोई खाली मटका
पर्वत से सागर
तक आया
आखिर कितना
बहता पानी

धरती का
पहला दरपन है
दरपन
जीवन का दर्शन है
छवियों का
पूर्ण समर्थन है
फिर भी निर्जन का
निर्जन है
बेचैन दिख रहा
प्रहरों से
मर्यादा खोती
लहरों से
भर लिया राम को
गोदी में
पानी से क्या
कहता पानी