भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रूठ कर जिससे कदम ने यात्राएँ कीं / प्रमोद तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:57, 23 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
घूम फिर कर लौट आये
हम उसी के पास
रूठ कर जिससे
कदम ने यात्राएं कीं
पांव नन्हें प्यार के
आक्रोश में बहके
हम बने भी फूल
तो किस गांव में
महके
था नहीं कोई जहां
लो फिर वहीं आये
व्यर्थ ही जाती रहीं
जो प्रार्थनाएं कीं
वह नदी जिसमें सदा तैरा
सदा डूबा
घाट जिस पर बैठ कर
ऊबा, बहुत ऊबा
मिल गये हैं
पर न वह
ऊबन
न वह डूबन
सोचता हूं ठीक थीं
जो यात्राएं कीं