भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हल की मूठ गहो / शील" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= शील }} <poem> क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी-- हल की मूठ ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी | + | क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी — |
हल की मूठ गहो! | हल की मूठ गहो! | ||
− | नवोन्मेष को मुखरित स्वर दो, | + | नवोन्मेष को मुखरित स्वर दो, |
− | अभ्यागत आगत को बल दो, | + | अभ्यागत आगत को बल दो, |
− | अंकुर को जल-धूप | + | अंकुर को जल-धूप — |
− | पवन से कह दो, समुद बहो। | + | पवन से कह दो, समुद बहो। |
− | हल की मूठ गहो। | + | हल की मूठ गहो। |
− | क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी | + | क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी — |
हल की मूठ गहो! | हल की मूठ गहो! | ||
− | अगणित कुश-कंटक उग आए, | + | अगणित कुश-कंटक उग आए, |
− | बैलों से बबूल टकराए। | + | बैलों से बबूल टकराए। |
− | ये हैं, कृषि के रोग | + | ये हैं, कृषि के रोग — |
− | बीज के दुश्मन, | + | बीज के दुश्मन, |
− | इन्हें दहो। | + | इन्हें दहो। |
− | हल की मूठ गहो। | + | हल की मूठ गहो। |
− | क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी | + | क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी — |
हल की मूठ गहो! | हल की मूठ गहो! | ||
</poem> | </poem> |
00:58, 29 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी —
हल की मूठ गहो!
नवोन्मेष को मुखरित स्वर दो,
अभ्यागत आगत को बल दो,
अंकुर को जल-धूप —
पवन से कह दो, समुद बहो।
हल की मूठ गहो।
क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी —
हल की मूठ गहो!
अगणित कुश-कंटक उग आए,
बैलों से बबूल टकराए।
ये हैं, कृषि के रोग —
बीज के दुश्मन,
इन्हें दहो।
हल की मूठ गहो।
क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी —
हल की मूठ गहो!