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लहरें जो सागर से करती और हवायें मधुवन से
साथी मेरे वही प्रीत मैं तुमसे करती हूँ मन से
गीतों में छंदों सा तुम हो
अधरों पर सजते हरदम
अंतस के धड़कन सा तुम हो
श्वासों पर बजते थम थम
पायल जो पैरों से करती और कलाई कंगन से
साथी मेरे वही प्रीत मैं तुमसे करती हूँ मन से
प्रातकाल की आभा तुम हो
सृष्टि में जो जान भरे
चाँद रात की शोभा तुम हो
मन के जो संताप हरे
कलियाँ जो भौरों से करती और घटायें सावन से
साथी मेरे वही प्रीत मैं तुमसे करती हूँ मन से
वेद ऋचा से पावन तुम हो
मंत्र हो पूजा में मेरी
आस दीप सा जलते तुम हो
आती जब भी रात अँधेरी
मीरा जो कान्हा से करती और शिव गंगा पावन से
साथी मेरे वही प्रीत मैं तुमसे करती हूँ मन से...