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वागेश्वरी रागेश्वरी सिद्धेश्वरी मृगलोचनी।
आ कंठ में मेरे बसो हे मात वीणा पाणिनी॥
तुम ज्ञान हो व्यवहार हो तुम हो ऋचा इक पावनी।
तुम से सकल ये सृष्टि है तुम हो घटा मनभावनी॥
सुंदर सुकोमल श्वेतवसना उज्जवला मृदुभाषिणी।
आ कंठ में मेरे बसो हे मात वीणा पाणिनी॥
तुम निर्मला हो पंकजा हो वेद की हो स्वामिनी।
तुम गीत हो तुम छंद हो तुम हंस की हो वाहिनी॥
हे गौरवर्णा! तुम सुभागी शांतिप्रिय तेजस्विनी॥
आ कंठ में मेरे बसो हे मात वीणा पाणिनी॥
हो बाँसुरी में तान बनकर शंख में भी वास है।
तुमसे जगत में माँ सदा से खिल रहा मधुमास है॥
भण्डार हो तुम सद्गुणों की मोद बुद्धि दायिनी।
आ कण्ठ में मेरे बसो हे मात वीणा पाणिनी॥