भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बसंत की ऋतु / श्वेता राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्वेता राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:59, 1 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

ये बसंत की ऋतु सखी! मन बहकाने आई है

फूलों ने भौरों पर अपने
सौरभ का जादू डाला
मस्त हुआ ये मौसम जैसे
पीली यौवन की हाला
गर्म हवाएं छूकर अब तन दहकाने आई है
ये बसंत की ऋतु सखी! मन बहकाने आई है

तरु शाखायें लदी हुई हैं
कोमल कोमल पात लिये
धरती भी अब झूम रही है
पीली पीली गात लिये
कोयल की मधुरिम बोली वन चहकाने आई है
ये बसंत की ऋतु सखी! मन बहकाने आई है

सरस मिलन ये दो ऋतुओं का
तन मन जिसमे नृत्य रता
देख के यौवन वसुधा का
आनंदित हो देह लता
बाहों की माला का ये चाह जगाने आई है
ये बसंत की ऋतु सखी!,मन बहकाने आई है...