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"चाह तुम्हारी / श्वेता राय" के अवतरणों में अंतर
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जीवन में बस चाह तुम्हारी
मन से मन की नातेदारी
महके जीवन की फुलवारी
रात अँधेरी भी लगती है संग तेरे उजियारी
जीवन में बस चाह तुम्हारी
भरी भाव से हिय पिचकारी
रंगती है जो प्रीत हमारी
बाहों में तेरी पाती मैं अपनी दुनिया सारी
जीवन में बस चाह तुम्हारी
जब भी मैं जीवन में हारी
करुण हो गई हर सिसकारी
सुधियाँ तेरी आ तब कहती मुझको प्राण प्यारी
जीवन में बस चाह तुम्हारी...!